Monday, August 12, 2019

तीन तलाक खत्म (An End of Triple Talaq)

 (INI हिंदी) तीन तलाक खत्म (An End of Triple Talaq)

मुख्य बिंदु:

मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक 2019 को संसद में मंज़ूरी मिल गई है। दोनों सदनों से पारित होने के बाद बीते दिनों इस पर राष्ट्रपति ने भी अपनी मुहर लगा दी है। संसद में मिली इस मंज़ूरी के बाद तीन तलाक क़ानून को लेकर बनी सभी मुश्किलें अब ख़त्म हो गई है। तीन तलाक क़ानून को अब 19 सितंबर 2018 से लागू माना जाएगा। यानी 19 सितंबर 2018 के बाद तीन तलाक से जुड़े सभी मामलों का निपटारा इसी क़ानून के आधार पर किया जायेगा। ग़ौरतलब है कि मौजूदा सरकार ने इस बिल को 25 जुलाई को लोकसभा और 30 जुलाई को राज्यसभा से पास कराया था। इससे पहले 22 अगस्त 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने भी शायरा बानों बनाम भारत संघ मामले में तलाक- ए - बिद्दत को असंवैधानिक करार दिया था।
DNS में आज हम आपको तीन तलाक से जुड़े मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक 2019 के बारे में बताएंगे। साथ ही समझेंगे इससे जुड़े विवादित मुद्दों के बारे में..
मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक 2019 के तहत तीन तलाक के मामले को अब दंडनीय अपराध माना जाएगा। विधेयक में प्रावधान है कि मौखिक, लिखित, इलेक्ट्रॉनिक या किसी अन्य रूप से दिए गए तीन तलाक को अवैध और ग़ैर क़ानूनी माना जाएगा।इसके अलावा विधयेक में प्रस्ताव है कि तत्काल तीन तलाक देने वाले पति को 3 साल तक की सज़ा और जुर्माना भी हो सकता है। विधेयक के तहत तीन तलाक को संज्ञेय अपराध घोषित किया गया है जिसका मतलब है कि महिला के शिकायत पर पुलिस बिना वारंट के आरोपित व्यक्ति को गिरफ़्तार कर सकती है। हालाँकि विधयेक में मजिस्ट्रेट को आरोपी व्यक्ति को जमानत देने का अधिकार भी दिया गया है। आरोपित व्यक्ति को पुलिस गिरफ़्तारी के बाद मजिस्ट्रेट के सामने पेश करेगी। जिसके बाद मजिस्ट्रेट इस मामले में मुकदमे से पहले तलाक देने वाले शख़्स की पत्नी का पक्ष सुन कर ज़मानत दे सकता है।
बिना पीड़ित महिला की रज़ामंदी के मजिस्ट्रेट कोई समझौता और ज़मानत नहीं दे सकता है। विधेयक में इस बात का भी ज़िक्र है कि पीड़िता के रक्त संबंधी और विवाह के बाद बने उसके संबंधी ही पुलिस में FIR दर्ज करा सकते हैं। इसके अलावा इस मामले को लेकर कोई पड़ोसी या कोई अन्य व्यक्ति तीन तलाक़ का केस नहीं दर्ज करा सकता है। विधेयक में पीड़ित महिला के गुज़ारे- भत्ते का भी प्रावधान किय गया है। तीन तलाक से पीड़ित अब कोई भी महिला ख़ुद और अपने बच्चे के लिए गुज़ारा भत्ता पाने की हक़दार होगी। ये गुज़ारा भत्ता मजिस्ट्रेट द्वारा तय किया जायेगा जिसे उसके पति यानी तलाक़ देने वाले शख़्स को ही देना होगा। साथ ही नाबालिक बच्चे को रखने का अधिकार भी पीड़ित महिला के ही पास रहेगा।

तीन तलाक़ है क्या?

तीन तलाक यानी तलाक-ए-बिद्दत। इसे ‘इंस्टेंट तलाक’ या मौखिक तलाक भी कहा जाता है। मुस्लिम समाज में तीन तलाक के तहत कोई पति अपनी पत्नी से अपने संबंधों को ख़त्म करने के लिए तलाक देता है। अक्सर तीन तलाक के मामले मौखिक, लिखित या इलेक्ट्रॉनिक रूप में देखे गए हैं।

भारत में तीन तलाक मसले को लेकर चलरे आ रहे विवाद के बारे में साथ ही इस पर सुप्रीम कोर्ट की राय के बारे में ?

तीन तलाक को लेकर भारत में पहली बार 80 के दशक में आवाज़ उठाई गई थी। दरअसल 1978 में 62 साल की एक मुस्लिम महिला शाह बानों को उसके पति ने तलाक़ दिया था। पांच बच्चों की मां रही शाह बानों ने जब अपने पति से गुज़ारा भत्ता की मांग की तो उनके पति ने गुज़ारा भत्ता देने से इंकार कर दिया। ऐसे में 1981 में तीन तलाक़ को लेकर शाह बानों का पहला मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा था।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने शाह बानों के पक्ष में फैसला सुनाया था। सुप्रीम कोर्ट ने धारा - 125 के तहत गुज़ारा भत्ता देने का हक़ तय किया। लेकिन मौजूदा सरकार ने संसद से क़ानून बना सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को बदल दिया था। मौजूदा सरकार ने द मुस्लिम प्रटेक्शन एक्ट 1986 ला कर सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश जिसके तहत धारा - 125 में मुस्लिम महिलाओं को गुज़ारा भत्ता देने का हक़ देना तय हुआ था उसे समाप्त कर दिया। 2016 में एक बार फिर एक और मुस्लिम महिला सायरा बानों ने इसके ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।
2016 में सुप्रीम कोर्ट ने कई और मामलों के साथ तीन तलाक पर सुनवाई शुरू की और अगस्त 2017 में तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित किया। इस मामले पर सुनवाई के लिए गठित 5 में से 3 न्यायाधीशों ने तीन तलाक को समानता का अधिकार सुनिश्चित करने वाले अनुछेद 14 का उलंघन बताया और कहा कि तीन तलाक मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का हनन करता है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में ये भी कहा कि ये प्रथा बिना कोई मौका दिए शादी को ख़त्म कर देती है। इसलिए इसे ख़त्म करने के लिए क़ानून बनाए जाने की ज़रूरत है।
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद सरकार ने पहले विधेयक और फिर अध्यादेश ला कर इसे क़ानून बनाने की कोशिश की। हालाँकि विधयेक के राजयसभा से पारित न हो पाने और फिर अध्यादेश के 16 वीं लोकसभा के समाप्त होने के बाद निरस्त हो जाने से एक बार फिर से 17 वीं लोकसभा में नया विधेयक लाकर क़ानून बनाया गया है।
सरकार के मुताबिक़ अरब देश भी तीन तलाक जैसी कुप्रथाओं को समाप्त कर रहे हैं। मौजूदा वक़्त में कुल 22 मुस्लिम देश तीन तलाक को ख़त्म कर चुके हैं। मिस्र दुनिया का पहला ऐसा देश हैं, जहां तीन तलाक पर प्रतिबन्ध लगाया गया था। इसके अलावा हमारे पड़ोसी मुल्क़ पाकिस्तान में भी 1956 से ही तीन तलाक पर बैन है। इस सूची में सूडान, साइप्रस, जार्डन, अल्जीरिया, ईरान, ब्रुनेई, मोरक्को, कतर और यूएई जैसे देश भी शामिल हैं जहां तीन तलाक़ पर प्रतिबन्ध है।
क़ानून मंत्री के मुताबिक़ जब मुस्लिम देश तीन तलाक जैसी कुप्रथाओं को ख़त्म कर सकते हैं तो भारत जैसे लोकतान्त्रिक और धर्मनिरपेक्ष देश में भी इसे समाप्त किया जाना बेहद ही ज़रूरी है। सरकार का मानना है कि तीन तलाक से पीड़ित क़रीब 70% महिलाऐं ग़रीब परिवारों से आती हैं। ऐसे में बिना किसी क़ानून के इन महिलाओं को न्याय मिल पाना बहुत मुश्किल था।
हालाँकि मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक 2019 का मुस्लिम परसनल बोर्ड ने विरोध किया है। इसके अलावा विधेयक में प्रस्तावित प्रावधानों में सज़ा के नियमों को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं ? एक पक्ष का कहना है कि तीन तलाक को ग़ैरकानूनी बनाना ठीक था लेकिन इसे अपराध की श्रेणी में रखना ग़लत है। तीन तलाक से लैंगिक समानता नहीं आती है। शिक्षा, आर्थिक स्थिति, स्वास्थ्य, सुरक्षा जैसे मुद्दे लैंगिक समानता के लिए ज़रूरी होते हैं। वही सरकार का इस मसले पर कहना ये है कि इसे अपराध की श्रेणी में रखने का मतलब ये नहीं है कि किसी व्यक्ति को जबरन जेल भेजना। इसका मक़सद मुस्लिम महिला के साथ हो रहे अन्नय को रोकना है। इसलिए सरकार ने इसे क़ानून के ज़रिए और सशक्त बनाने की कोशिश की है।
जानकारों का कहना है कि इस क़ानून के आने के बाद महिलाओं को लैंगिक बराबरी का अधिकार मिलेगा। साथ ही मुस्लिम महिलाओं के मौलिक अधिकार भी सुनिश्चित होंगे। इस मामले पर कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि दरअसल समाज में परिवर्तन की गति धीमी होती है। अगर समाज अपने आप को ठीक करनी की स्थिति में नहीं है तो क़ानून की ज़रूरत पड़ती है। सरकार के भी मुताबिक़ सुप्रीम कोर्ट से तीन तलाक को ग़ैरकानूनी घोषित किए जाने के बाद भी तीन तलाक नहीं रुका है।

Thursday, August 8, 2019

370 के बाद भी जम्मू-कश्मीर में जमीन खरीदना आसान नहीं, बनेंगे कड़े नियम!

370 के बाद भी जम्मू-कश्मीर में जमीन खरीदना आसान नहीं, बनेंगे कड़े नियम!

तेजाराम देवासी






नई दिल्ली, 8

जम्मू-कश्मीर से स्पेशल स्टेटस का दर्जा खत्म होने के बाद यह बात हर ओर प्रचारित की जा रही है कि घाटी में कोई भी जाकर जमीन खरीद सकता है. लेकिन कई राज्य ऐसे हैं जिनके लिए विशेष प्रावधान के तहत हर किसी के लिए जमीन खरीदने पर प्रतिबंध है. जम्मू-कश्मीर में भी ऐसी ही कड़ी व्यवस्था की मांग उठने लगी है 

मोदी सरकार की ओर से अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू और कश्मीर को मिल रहे स्पेशल स्टेटस का दर्जा खत्म किए जाने के बाद अब स्थानीय लोगों को यह डर सता रहा है कि बाहरी लोग वहां आकर ताबड़तोड़ जमीन खरीदने लगेंगे और बड़ी संख्या में बस जाएंगे. हालांकि, ऐसा होना आसान नहीं है और अब भारतीय जनता पार्टी के स्थानीय नेता तथा जम्मू-कश्मीर के पूर्व उपमुख्यमंत्री निर्मल सिंह ने केंद्र सरकार से डोमिसाइल जैसी कड़ी व्यवस्था लाने का सुझाव दिया है.
जम्मू कश्मीर के पूर्व उपमुख्यमंत्री निर्मल सिंह ने स्थानीय नागरिकों की आवाज केंद्र सरकार तक पहुंचाने की बात कही है. डॉक्टर निर्मल सिंह ने कहा, 'हम केंद्र सरकार को जमीन से संबंधित अधिकारों के विकल्प के बारे में सुझाव देंगे. केंद्र पहले ही स्थानीय अधिकारों को सुनिश्चित करने के ऑप्शन तलाश रहा है.'
'स्थानीय नागरिकों की सुरक्षा अहम'
निर्मल सिंह ने कहा, 'हम जल्द ही जम्मू-कश्मीर में भूमि से संबंधित अधिकारों को प्रस्तावित करेंगे. स्थानीय नागरिकों के हितों की सुरक्षा की जाएगी. जिस तरह से पंजाब और हिमाचल प्रदेश में कृषि योग्य भूमि नहीं खरीदी जा सकती, ऐसी ही व्यवस्था यहां भी होनी चाहिए. हालांकि केंद्र सरकार पहले से ही इस तरह के विकल्प पर विचार कर रही है.'
जम्मू-कश्मीर विधानसभा के स्पीकर निर्मल सिंह ने यह भी कहा कि निजी सेक्टरों के आने से राज्य में उद्योग जगत को बढ़ावा मिलेगा. उन्होंने उम्मीद जताई कि किसी भी तरह का दुरुपयोग नहीं होगा और जमीन के मालिकों का हित बरकरार रहेगा.
उन्होंने कहा कि अगर कोई अपनी जमीन बेचना चाहे तो बेच सकता है. लेकिन इस तहर का डर फैलाया जा रहा है कि बाहरी लोग यहां आकर पूरी जमीन खरीद लेंगे और यहां बस जाएंगे. इस तरह की किसी भी संभावना से इनकार करते हुए उन्होंने कहा, 'मैं यह आश्वासन दे सकता हूं कि ऐसा नहीं होगा. कश्मीरी नेता अगर आतंकवादी और पाकिस्तान समर्थित लोगों का अपने यहां स्वागत कर सकते हैं तो इंडस्ट्री का क्यों नहीं कर सकते?'
कश्मीर जल्द ही राज्य से केंद्र शासित प्रदेश के रूप में बदलने जा रहा है. ऐसा होने से राज्य में रोजगार की संभावनाएं बढ़ सकती है. उन्होंने कहा कि सरकारी नौकरी में महज 6 फीसदी लोग ही हैं. जबकि 90 फीसदी लोग कश्मीर के निवासी हैं. अब उनके पास रोजगार के नए असवर होंगे.
'परिवारों का खत्म हुआ विशेषाधिकार'
निर्मल सिंह ने कहा कि राज्य में अब तक कुछ ही परिवारों के पास विशेषाधिकार था. जबकि जम्मू, लद्दाख, गुर्जरों, बक्करवालों और वाल्मीकियों के साथ भेदभाव किया गया था.
संसद से अनुच्छेद 370 के जरिए राज्य को मिले स्पेशल स्टेटस का दर्जा हटाए जाने के बाद ही डॉक्टर निर्मल सिंह ने अपनी गाड़ी से जम्मू-कश्मीर का झंडा उतार दिया था. पहले उनकी गाड़ी पर तिरंगा और जम्मू-कश्मीर का झंडा लगा हुआ था, लेकिन अब उन्होंने जम्मू-कश्मीर का झंडा उतार दिया है. इसके बाद उनकी गाड़ी पर सिर्फ एक ही झंडा (तिरंगा) लगा हुआ है.
बाहरी के लिए आसान नहीं जमीन खरीदना
जम्मू-कश्मीर से स्पेशल स्टेटस का दर्जा खत्म होने के बाद यह बात हर ओर प्रचारित की जा रही है कि घाटी में कोई भी जाकर जमीन खरीद सकता है. लेकिन अगर जम्मू-कश्मीर को छोड़ भी दिया जाए तो कई राज्य ऐसे हैं जिनके लिए विशेष प्रावधान के तहत हर किसी के लिए जमीन खरीदने पर प्रतिबंध है. और अब यहां भी ऐसी ही व्यवस्था करने की मांग उठने लगी है,
देश में कई क्षेत्र ऐसे हैं, जहां अनुच्छेद 371 की वजह से बाहरी लोगों के लिए वहां पर जमीन खरीदना संभव नहीं है. कई राज्य ऐसे हैं, जहां पर खेती योग्य जमीन नहीं खरीदी जा सकती. हिमाचल प्रदेश में बाहरी लोग खेती के लिए जमीन नहीं खरीद सकते. आवासीय जमीन खरीदने के लिए सरकार से अनुमति लेनी होती है. उसी तरह उत्तराखंड में भी बाहरी लोगों के जमीन खरीदने पर रोक है. साथ ही ऐसा प्रबंध भी किया गया है कि जमीन बिल्डर के हाथों न चला जाए.
तमिलनाडु में खेती योग्य जमीन खरीदने पर रोक लगी हुई है. गैर खेती योग्य जमीन खरीदने के लिए भी कड़े नियम है और वही जमीन बेची जा सकती है जहां 10 सालों से खेती न हो रही हो. कर्नाटक और केरल में भी बाहरी लोगों के लिए जमीन खरीदने को लेकर कड़े नियम हैं. पूर्वोत्तर भारत के नगालैंड, मिजोरम और सिक्किम में बाहरी लोगों के लिए जमीन खरीदने पर प्रतिबंध है.

Thursday, June 20, 2019

विश्व योग दिवस : मानव और प्रकृति के मध्य समन्वय ही योग है...

                 INCREDIBLE NEWINDIA



By tejaram dewasi
महर्षि पतंजलि के अनुसार - ‘अभ्यास-वैराग्य द्वारा चित्त की वृत्तियों पर नियंत्रण करना ही योग है।'  विष्णु पुराण के अनुसार- ‘जीवात्मा तथा परमात्मा का पूर्णतया मिलन ही योग; अद्वेतानुभूति योग कहलाता है।'
 
भगवद्गीताबोध के अनुसार- ‘दुःख-सुख, पाप-पुण्य, शत्रु-मित्र, शीत-उष्ण आदि द्वन्दों से अतीत; मुक्त होकर सर्वत्र समभाव से व्यवहार करना ही योग है।'
 
सांख्य के अनुसार- ‘पुरुष एवं प्रकृति के पार्थक्य को स्थापित कर पुरुष का स्वतः के शुद्ध रूप में अवस्थित होना ही योग है।
 
योग शब्द, संस्कृत शब्द 'योक' से व्युत्पन्न है जिसका का मतलब एक साथ शामिल होना है। मूलतः इसका मतलब संघ से है। मन के नियंत्रण से ही योग मार्ग में आगे बढ़ा जा सकता है। मन क्या है? इसके विषय में दार्शनिकों ने अपने-अपने मत दिए हैं तथा मन को अन्तःकरण के अंतर्गत स्थान दिया है। मन को नियंत्रण करने की विभिन्न योग प्रणालियां विभिन्न दार्शनिकों ने बतलाई हैं।

मनुष्य की सभी मानसिक बुराइयों को दूर करना का एक मात्र उपाय अष्टांग योग है। राजयोग के अंतर्गत महर्षि पतंजलि ने अष्टांग को इस प्रकार बताया है। 
 
यमनियमासनप्राणायामप्रत्याहारधारणाध्यानसमाधयोऽष्टाङ्गानि।
 
1. यम (पांच 'परिहार') : अहिंसा, झूठ नहीं बोलना, गैर लोभ, गैर विषयासक्ति और गैर स्वामिगत। 
 
2. नियम (पांच 'धार्मिक क्रिया'): पवित्रता, संतुष्टि, तपस्या, अध्ययन और भगवान को आत्मसमर्पण। 
 
3. आसन: मूलार्थक अर्थ 'बैठने का आसन' और पतंजलि सूत्र में ध्यान। 
 
4. प्राणायाम ('सांस को स्थगित रखना'): प्राणा, सांस, 'अयामा', को नियंत्रित करना या बंद करना। साथ ही जीवन शक्ति को नियंत्रण करने की व्याख्या की गई है।
 
5. प्रत्यहार ('अमूर्त'): बाहरी वस्तुओं से भावना अंगों के प्रत्याहार। 
 
6. धारणा ('एकाग्रता'): एक ही लक्ष्य पर ध्यान लगाना। 
 
7. ध्यान ('ध्यान'): ध्यान की वस्तु की प्रकृति गहन चिंतन।
 
8. समाधि ('विमुक्ति'): ध्यान के वस्तु को चैतन्य के साथ विलय करना। इसके दो प्रकार है - सविकल्प और अविकल्प। अविकल्प समाधि में संसार में वापस आने का कोई मार्ग या व्यवस्था नहीं होती। यह योग पद्धति की चरम अवस्था है।)

 

वर्तमान समय में योग द्वारा मन को नियंत्रण में करते हुए व मानसिक आरोग्यता प्राप्त करते हुए ही हम आध्यात्मिकता एवं समृद्धि को प्राप्त कर सकते हैं तथा आध्यात्मिकता समृद्धि; में ही हमें मानसिक आरोग्यता प्राप्त होती है यह सर्वविदित है। भूमण्डलीकरण, कम्प्यूटरीकरण, अभूतपूर्व तीव्र आवागमन एवं संदेशवाहन, जनसंख्या वृद्धि की तीव्र गति, सूचना प्रौद्योगिकी के अभूतपूर्व विकास एवं विश्व स्तर पर मानव अन्तरक्रिया के वर्तमान युग में मनुष्यों में तनाव का स्तर तेजी से बढ़ा है और मानसिक आरोग्य बनाए रखना कठिन हो गया है। 
पाश्चात्य मनोचिकित्सा के क्षेत्र में नए-नए विकास होने के साथ पूरब और पश्चिम में सब कहीं विचारकों और चिकित्सकों ने योग द्वारा मानसिक आरोग्य की सम्भावनाएं खोजने का प्रयास किया है। भावातीत ध्यान योग का पश्चिम में इस क्षेत्र में भारी स्वागत किया गया है। प्रचार के अभाव में भारत की विभिन्न योग प्रणालियों एवं श्री अरविन्द के योग समन्वय के विषय में पश्चिम में अभी अधिक जानकारी नहीं हैं फिर भी सभी प्रकार की योग प्रणालियों, विशेषतया हठयोग के आश्चर्यजनक परिणाम सामने आए हैं। विभिन्न योग प्रणालियों द्वारा तुलनात्मक समीक्षा का अभी अभाव है।
 
योग से मानसिक आरोग्यता :- 
 
फ्रायड के मतानुसार ‘मन के उपकरण के तीन घटक इदम्, अहम्, परम्, अहम् है। इन तीनों घटकों में होने वाले असंतुलन के परिणामस्वरूप ‘असामान्यता' का उद्भव होता है। योग द्वारा मानसिक आरोग्य: ‘योग' संकल्पना की जड़ मूल रूप से भारतीय विचारधारा से आई है जबकि पश्चिमी विचारधारा के मूल में मानसिक आरोग्यता की संकल्पना रही है। भारतीय विचारधारा में ‘मन' की विभिन्न अवस्थाओं- मूढ, क्षिप्त, विक्षिप्त, एकाग्र, निरूद्व आदि का उल्लेख मिलता है। महर्षि पतंजलि ने योगदर्शन के अंतर्गत अष्टांग योग में समाधि का वर्णन किया है। इसलिए समाधि, मुक्ति, निर्वाण, आत्म साक्षात्कार, भगवद प्राप्ति की अवस्था में व्यक्ति मानसिक रूप से आरोग्यता प्राप्त करता है।
 
भारतीय विचारधारा में स्वस्थ मन के लिए विभिन्न साधन बताने पर भी मानसिक आरोग्यता जैसी स्वतन्त्र संकल्पना भारतीय विचारधारा में न आने का कारण यह है कि भारतीय विचारधारा में व्यक्तित्व को सदैव समग्र रूप से लिया गया है न कि उसके विभिन्न पहलुओं पर अलग-अलग रूप से विचार किया गया है। योग शब्द जिस धातु से निष्पन्न हुआ है, वह पाणिनीय व्याकरणानुसार, दिवादी, रूधादि एवं चुरादि तीनों गुणों में प्राप्त होता है।
'युजर समाधौ; दिवादिगणद्ध, युज संयमने; चुरादिगणद्ध, युजिर् योगे; रूधादिगणद्ध।' युज धातु से व्युत्पन्न होने वाला योग भी पुल्लिंग में प्रयुक्त होने पर समाधि अर्थ का वाचक है परन्तु नपुंसकलिंग में प्रयुक्त होने पर योग-शास्त्र रूप अर्थ का ज्ञापक है। महर्षि व्यास ने भी योग का अर्थ समाधि बतलाया है। इस प्रकार गण भेद से योग शब्द के प्रमुख अर्थ समाधि, संयोग तथा संयमन होता है। 
 
मानसिक आरोग्य कहां तक प्राप्त किया जा सकता है, इस विषय पर आज योग को जीवन जीने की एक कला व विज्ञान के साथ-साथ औषधि रहित चिकित्सा पद्धति के रूप में लोकप्रियता मिल रही है। योग का नियमित अभ्यास हमारे अंदर समता, समभाव और सौहार्द को बढ़ाता है और हमें आपस में जोड़ता है। योग का लक्ष्य रोगों की रोकथाम करने के अलावा लोगों को भौतिक, मानसिक, सामाजिक, आध्यात्मिक और भावनात्मक स्तर पर सम्पूर्ण स्वास्थ्य प्रदान करना भी है।

कर्मयोग, ध्यानयोग और भक्तियोग :- 
 
तत्वदर्शी ऋषियों ने सर्व साधारण के लिए- जिस सामान्य स्तर की साधना पद्धति का निर्देश किया है उसे ही कर्म योग ज्ञान और भक्ति-योग की त्रिवेणी कहते हैं। हर दिन नया जन्म हर रात नई मौत की विचारणा हमें इस बात के लिए प्रेरित करती है कि आज का दिन एक अनुपम सौभाग्य माना जाए और उसका श्रेष्ठतम सदुपयोग किया जाए। यही कर्म योग की आधार शिला है।
सूक्ष्म शरीर का विकास करने के लिए मानसिक स्तर को परिष्कृत करने के लिए- ज्ञान योग की साधना है। उत्कृष्ट विचारों का मन में भरे रहना उसमें ईश्वर की भावनात्मक प्रतिमा प्रतिष्ठापित किए रहना ही है। ईश्वरीय सत्ता से -प्राणि मात्र से अनन्य आत्मीयता भरा प्रेम सम्बन्ध स्थापित कर लेता है। करुणा, दया, सेवा, उदारता, सहृदयता, सद्भावना, सहानुभूति सज्जनता के रूप में उसको पग-पग पर उसे कार्यान्वित करना ही भक्ति योग है।
देह, मन और हृदय के त्रिविधि परिधानों को स्थूल, सूक्ष्म एवं कारण शरीर को विकसित करने के लिए जो भी तरीके हैं उन सबको कर्मयोग, ज्ञानयोग एवं भक्तियोग की परिधि में सम्मिलित किया जा सकता है। यही तीनों ही साधनाएं  -आत्मा के त्रिविधि परिधानों को सुविकसित एवं सर्वांग सुन्दर बनाने में समर्थ रही हैं। कर्म योग से शरीर, ज्ञान योग से मन और भक्ति योग से अन्तःकरण की महान महत्ताओं का विकास होता है। यों मोटे तौर से आहार व्यायाम से शरीर, शिक्षा से मन और वातावरण से अन्तःकरण के विकास का प्रयत्न किया जाता है पर यह तरीके बाह्योपचार मात्र हैं।
 
पर्यावरण संतुलन भी योग है :- 
 
भौतिक विषयों (आसन) और मानसिक विषयों (ध्यान) के माध्यम से ब्रह्मांडीय आत्मा के साथ व्यक्ति की आत्मा को एकजुट करने का विज्ञान योग है।  पतंजलि ने संक्षेप में इस शब्द की व्याख्या की है कि योग मन की समाप्ति है। योग मन की तपस्या है। योग प्राचीन भारत आध्यात्मिकता के इतिहास का अंत उत्पाद है। प्रकृति स्वभाव से ही योगी है उसके हर कण में योग है। वृक्ष सबसे बड़े योगी निश्चल निशब्द सैकड़ों वर्षों से योग में लिप्त बैठे हैं। 
 
शुक्ल यजुर्वेद में ऋषि प्रार्थना करता है, ‘द्योः शांतिरंतरिक्षं...’ (शुक्ल यजुर्वेद, 36/17)। इसलिए वैदिक काल से आज तक चिंतकों और मनीषियों द्वारा समय-समय पर पर्यावरण के प्रति अपनी चिंता को अभिव्यक्त कर मानव जाति को सचेष्ट करने के प्रति अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह किया गया है। पृथ्वी के सभी जैविक और अजैविक घटक संतुलन की अवस्था में रहें, अदृश्य आकाश (द्युलोक), नक्षत्रयुक्त दृश्य आकाश (अंतरिक्ष), पृथ्वी एवं उसके सभी घटक-जल, औषधियां, वनस्पतियां, संपूर्ण संसाधन (देव) एवं ज्ञान-संतुलन की अवस्था में रहें, तभी व्यक्ति और विश्व, शांत एवं संतुलन में रह सकता है। 
 
पर्यावरणीय तत्वों में समन्वय होना ही सुख शांति का आधार है। दूसरे शब्दों में पदार्थों का परस्पर समन्वय ही शांति है। यही प्रकृति का योग है। 
 
दश कूप समा वापी, दशवापी समोहद्रः।
दशहृद समः पुत्रो, दशपुत्रो समो द्रुमः।
 
पर्यावरण के संतुलन में वृक्षों के महान योगदान एवं भूमिका को स्वीकार करते हुए मुनियों ने बृहत् चिंतन किया है। मत्स्य पुराण में उनके महत्व एवं महात्म्य को स्वीकार करते हुए कहा गया है कि दस कुओं के बराबर एक बावड़ी होती है, दस बावड़ियों के बराबर एक तालाब, दस तालाबों के बराबर एक पुत्र है और दस पुत्रों के बराबर एक वृक्ष होता है। 
 
यहां एक सवाल उठता है कि योग तकनिक ग्लोबल वार्मिंग के मुद्दे को हल करने के लिए उपयोगी है? योग चेतना और महत्वाकांक्षा नियंत्रण और जीवन के भौतिक पदार्थों के नियमन और आत्म अनुशासन के लिए मंच प्रदान करता है। जलवायु परिवर्तन मनुष्य के बेकाबू उपभोक्तावाद एवं जीवन की अनुशासनहीनता का परिणाम है। 
जलवायु परिवर्तन वास्तव में तापमान में वृद्धि कर रहा है और इसका नकारात्मक प्रभाव कृषि, आजीविका, वन, जल निकायों और लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। योग के माध्यम से हम प्रकृति से तादात्म स्थापित कर उसके संरक्षण की प्रवृत्ति मनुष्य के अन्दर उत्पन्न कर सकते हैं एवं प्रकृति के दोहन से भविष्य में मानव जीवन पर जो घोर विपत्तियां आने वाली हैं उनसे बच सकते हैं। 

Wednesday, March 6, 2019

असहिष्णुता क्या है और अंतरराष्ट्रीय सहिष्णुता दिवस 2019

न‌यें भारत की नई पहचान

By Incredible newindia [Tejaram Dewasi]

असहिष्णुता क्या है और अंतरराष्ट्रीय सहिष्णुता दिवस 2019 

भारत शुरू से ही धार्मिक प्रवृत्ति का रहा है. यहाँ कई दैवीय जन्म होने की मान्यता है, कई ऋषि मुनि हुए जो सभी की धर्म के प्रति आस्था बढ़ाते हैं. भारत के इतिहास में युगों से ऋषि, मुनि, राजा-महाराजा संयम को अपनाते हुए निरंतर आगे बढ़ते रहे हैं. धर्म के वेद –पुराणों में पूरी पृथ्वी को एक परिवार माना गया है.  हम पृथ्वी को माता के रूप में देखते हैं और माता के सहनशीलता तथा निरंतरता के गुण को आत्मसात करना अपना कर्तव्य समझते हैं.  
"वसुधेव कुटुंबकम” की मान्यता है, अर्थात पूरा विश्व एक ही परिवार है, का सिद्धान्त देने वाला भारत सदियों से सहिष्णुता, पारस्परिक स्नेह और सौहार्द का पक्षधर रहा हैं. लेकिन वर्तमान में वैश्विक स्तर पर सहिष्णुता लुप्तप्राय: हैं. जैसे-जैसे वैश्वीकरण हो रहा हैं वैसे-वैसे दुनिया के विभिन्न समाजों एवं देशों में विविध प्रकार का परिवर्तन देखा जा रहा है. वैश्वीकरण से संवाद और विनिमय के तो कई अवसर बन रहे हैं,लेकिन कई नई चुनौतियां भी सामने आ रही हैं. असमानता और गरीबी से लगातार संघर्ष देशों की प्रगति को धीमा कर रहा है. इन समस्याओं के बहुत से कारणों में से एक असहिष्णुता भी एक हैं.
असहिष्णुता क्या है? ( Intolerance Definition, Meaning)
सहिष्णुता का विपरीत होता है “असहिष्णुता”. असहिष्णुता अर्थात सहने की शक्ति नहीं होना. भारत को संयमित, सहनशील राष्ट्र के रूप में देखा जाता है. परंतु आजकल यह देखने एवं सुनने में आ रहा है, भारत के लोग असहिष्णु होते जा रहे हैं. भारत की जनता किसी भी घटना पर तुरंत ही अपनी प्रतिक्रिया देने लग गयी है. देश में होने वाली छोटी सी भी घटना पर देश की जनता आक्रोशित होने लगी है एवं अपना संयम तथा सहनशीलता खोने लगी है. अपने विचारों को प्रकट करने में लोग छोटी छोटी बातों को तूल देते हुए बड़ा करने में लगे हैं. कई बार छोटी छोटी घटना से विवाद इतना बढ़ जाता है, कि लोगों की जान पर बन आती है. 
intolerance Tolerance Day
इतिहास (History of International Day for Tolerance)
1993 में विधानसभा (रिजोल्यूशन 48/126) द्वारा उद्घोषणा किये जाने के बाद 1995 में यूनाइटेड नेशन ईयर फॉर टोलेरेंस के वर्ष में  एक्शन लिया गया था, जिसके अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय सहिष्णुता दिवस मनाने के प्रस्ताव के साथ आम-जन के लिए विविध गतिविधियाँ तय की गयी थी.  1995 से पहले हुई यूनेस्को की जनरल कांफ्रेंस में यूनाइटेड नेशन ईयर फॉर टोलेरेंस का वर्ष मनाने की घोषणा की गयी थी. 1996 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (यू एम जनरल एसेम्बली)  के सदस्य राज्यों को 16 नवंबर को सहिष्णुता के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाने के लिए आमंत्रित किया , जिसमें शैक्षणिक प्रतिष्ठानों और जनता (12 दिसंबर के रिजोल्यूशन 51/95)के लिए विभिन्न क्रियाविधियाँ निर्धारित की गई यूनेस्को के सदस्य देशों ने अगले वर्ष के लिए 16 नवंबर, 1995 को सहिष्णुता और इस सिद्धांत से सम्बंधित योजनाओं की घोषणा को स्वीकार किया. इसके बाद 2005 में हुआ विश्व शिखर सम्मेलन  मानव कल्याण, हर जगह स्वतंत्रता और प्रगति, सहिष्णुता, सम्मान, संवाद और विभिन्न संस्कृतियों, सभ्यताओं और लोगों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न राज्य सरकारों के प्रमुखों को प्रतिबद्ध करने के लिए जाना जाता हैं. इस कारण ही विश्व सहिष्णुता दिवस के संदर्भ में बात करने पर 2005 के विश्व शिखर सम्मेलन की बात करना भी जरूरी हो जाता हैं.

अंतरराष्ट्रीय सहिष्णुता दिवस क्यों मनाया जाता हैं?? (Why International Day for Tolerance celebrate)
पिछले कुछ वर्षों में आतंकवाद, हिंसा, रंगभेद जैसी कई गतिविधियाँ सामने आई हैं जिसके कारण कुछ देशों का, धर्म का, अल्पसंख्यकों का , शरणार्थीयों और प्रवासियों  के आधारभूत मानवाधिकारों का हनन होने लगा हैं. इन सबसे विश्व भर में लोकतंत्र, शान्ति और विकास की दिशा में कई बाधाएं आ रही हैं. इन परिस्थितियों में मानवता का अस्तित्व बचाने के लिए शांति और सौहार्द को बढ़ावा देने के लिए वर्ष में एक ऐसा दिन मनाने की आवश्यकता हुई जब लोगों को सहिष्णुता के प्रति जागरूक किया जा सके और असहिष्णुता के कारण होने वाले खतरों के प्रति जागरूक किया जा सके.
 सहिष्णुता दिवस उद्देश्य (Objectives)
इस दिन को मनाने का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य विश्व भर में लोगों को सहिष्णुता का महत्व समझाना हैं. आज राजनीति के अंतर्गत विभिन्न राजनेताओं द्वारा  दिए जाने वाले विभाजन के भाषण आसानी से देखे जा सकते हैं, जिन पर प्रतिक्रिया में हिंसा का फैलना ही असहिष्णुता का उदाहरण हैं. किसी भी समाज में शक्तिशाली वर्ग का रूप यदि नकारात्मक हो और शोषण करने वाला हो, तो असहिष्णुता के लिए अच्छी जमीन तैयार हो जाती हैं. शोषित वर्ग को दबाना और उनके तर्क एवं पक्ष को खारिज करना ही असहिष्णुता की श्रेणी में आता हैं. सहिष्णुता का सम्बंध केवल इन दो वर्गों के मध्य ही नहीं हैं, जहां भी सोच का टकराव होता हो या जहां भी हितों की प्रतिस्पर्धा होती हो, वहाँ पर असहिष्णुता का उद्भव होता ही हैं. कई बार ये असहिष्णुता नफरत में परिणीत हो जाती हैं, जिसका परिणाम विनाशकारी सिद्ध हो सकता हैं.
असहिष्णुता की शुरुआत हमेशा छोटे-छोटे मुद्दों से होती हैं, जैसे किसी एक अपराधी के कारण पूरे वर्ग को दोषी मानकर उन्हें समाज में उचित स्थान और सम्मान ना देना, या फिर किसी देश विशेष में होने वाली कुछ नकारात्मक घटनाओं को ध्यान में रखते हुए विश्व समुदाय का उस देश को ही उसके अधिकारों से वंचित करना जैसी कई बातें हैं, जो वैश्विक स्तर पर असहिष्णुता में आती हैं. लेकिन मानवता एक ऐसा आधारभूत योजक हैं, जिसने सम्पूर्ण विश्व को आपस में जोड़ रखा हैं. इसके अलावा प्यार और सौहार्द से किसी भी तरह की नफरत की खाई को कम किया  जा सकता हैं. दुनिया में स्नेह और सौहार्द को फ़ैलाने के लिए ही सहिष्णुता दिवस मनाने की आवश्यकता महसूस हुई हैं. क्योंकि दुनिया में विभिन्न देशों की भले संस्कृतियां अलग-अलग हैं, लेकिन मानवता के तौर पर अपने मूल्यों की साझेदारी और अतीत एवं भविष्य को भुलाकर वर्तमान में सम्मानपूर्वक जीवन जीना और जीने देना ही है, वैश्विक स्तर पर सहिष्णुता दर्शाने का अच्छा तरीका  हैं.
यूनाइटेड स्टेट का उद्देश्य पूरे विश्व में सहिष्णुता,मानवता ,सौहार्द एवं स्नेह को बढावा देना हैं. आधुनिक युग में बढती नफरत और हिंसा को रोकने के लिए ये बहुत आवश्यक हैं, कि इस दिशा में यथायोग्य कदम उठाए जाए. क्योंकि प्रत्येक मानव को शान्ति-पूर्ण और सम्मान के साथ जीने का अधिकार हैं,और इस तरह के प्रयासों ही विश्व में सहिष्णुता एवं सौहार्द विकसित की जा सकती हैं.
यूनाइटेड नेशन में यूनेस्को का औचित्य ही मानवता के हित के लिए आवश्यक काम करना और इसको प्रोत्साहन देना ही हैं. सहिष्णुता के माध्यम से ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, विभिन संस्कृतियों और धर्मों को सम्मान और महिला सशक्तिकरण जैसे आवश्यक कार्य किये जा सकते हैं.
अंतरराष्ट्रीय सहिष्णुता दिवस प्रतीक  (Symbols)
यूनेस्को के चिन्ह (logo) में एक मन्दिर को दिखाया गया हैं, जिसमें संयुक्त राष्ट्र के शैक्षणिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन के बारे में बताने के लिए यूनेस्को के संक्षिप्त नाम (UNESCO) का उपयोग कियागया हैं. और इस मंदिर के नीचे “यूनाइटेड नेशन्स एजुकेशनल,साइंटिफिक एंड कल्चरल ओर्गनाइजेशन” शब्द लिखा गया हैं, जिसका हिंदी अर्थ “संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन” हैं. इस चिन्ह का उपयोग अंतर्राष्ट्रीय सहिष्णुता दिवस के लिए ऑनलाइन या मुद्रित प्रचार सामग्री में किया जाता है.
यूनेस्को के पूरे नाम का उपयोग विभिन्न भाषाओँ में भी किया जाता है, लेकिन इसे समझने के लिए किसी निर्धारित भाषा के साथ ही इंग्लिश में पूरा नाम भी लिखा जाता हैं, जिससे संस्था के संक्षिप्त नाम (एक्रोनिम) को समझा जा सके. यूनेस्को की 6 आधिकारिक भाषाएं अरेबिक, चाइनीज, इंग्लिश, फ्रेंच, रशियन और स्पेनिश हैं. 1995 में ही यूनेस्को ने महात्मा गांधी के 125वीं वर्षगाँठ पर सहिष्णुता और अहिंसा को प्रोत्साहन देने और इसका प्रचार-प्रसार करने के उद्देश्य से  मदनजीत सिंह पारितोषिक (प्राइज) देना भी तय किया था. ये पुरूस्कार हर 2 वर्ष में विज्ञान, कला, संस्कृति या कम्युनिकेशन में अच्छा प्रदर्शन करने वाली किसी संस्था या व्यक्ति को दिया जाता हैं.
अंतरराष्ट्रीय सहिष्णुता दिवस (International Day for Tolerance 2018 Date)
1
दिवस (Event Name)
अंतर्राष्ट्रीय सहिष्णुता दिवस
2
मनाने की तारीक (Date Of Celebration)
16 नवंबर प्रति वर्ष
3
पहली बार कब मनाया गया (First Observed On)
1995
4
किसने शुरू किया (First Observed By)
युनेस्को द्वारा
5
कौन अनुसरण करता हैं ? (Followers)
अंतराष्ट्रीय स्तर
कैसे मनाया जाता हैं? ( How to celebrate)
इस दिन हर देश की सरकार आम-जन को सहिष्णुता के प्रति जागरूक होने के लिए प्रेरित करती हैं, इसके लिए कई प्रकार के आयोजन किये जाते हैं. इसके लिए स्कूल में कई तरह के कार्यक्रम किये जाते हैं, जिसमें पोस्टर बनाना, वाद-विवाद और कार्यशाला का आयोजन किया जाता हैं. बच्चों को न्याय, सहिष्णुता, नैतिकता जैसे मूलभूत  जानकारियों की शिक्षा दी जाती हैं. इस दिन मानवाधिकारों के प्रति जागरूकता अभियान जाता हैं, कुछ संस्थाएं ऐसे आयोजन भी करती हैं, जिसमें मानवाधिकारों के साथ ही सहिष्णुता के मूद्दे पर भी चर्चा की जाती हैं. सोशल मीडिया पर भी इसका ट्रेंड रहता हैं, अपने आस-पास के मुद्दों पर लिखकर या फोटोज के माध्यम से दिखाकर भी लोग सहिष्णुता को समझने और समझाने का प्रयत्न करते हैं.
2018 में विश्व सहिष्णुता दिवस (International Day for Tolerance 2018 date)
प्रति वर्ष की भांति 2018 में भी यह अपने लिए नियत दिवस 16 नवंबर को ही मनाया जाएगा और इस बार ये 22वां वर्ष होगा, जब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहिष्णुता दिवस का आयोजन किया जाएगा. यूएन का अंतर्राष्ट्रीय असहिष्णुता दिवस वैश्विक स्तर पर मनाया जाने वाला दिन हैं, लेकिन इस दिन अवकाश नहीं होता हैं.
2018 इवेंट्स (2018 events)
2018 में यूट्यूब के सहयोग से 16 नवंबर को  यूनाइटेड नेशन का short फिल्म की स्क्रीनिंग करने का आयोजन किया जाएगा. एजुकेशन आउट रिसर्च सेक्शन और मानवाधिकारों के यूनाइटेड नेशन हाई कमिश्नर  ऑफिस  से 4 प्रतिनिधियों और रचनाकार इस कार्यक्रम में दर्शकों और छात्रों के साथ  होने वाली चर्चा में भाग लेंगे. कार्यक्रम में 750 प्रतिभागी प्रेजेंटेशन देंगे जिनमें से चुने गये छात्र/छात्रा ही 4 प्रतिनिधियों के साथ होने वाले डिस्कशन में भाग ले सकेंगे.
वास्तव में सहिष्णुता शान्ति की दिशा में उठाया गया पहला कदम हैं. जिससे कई ऐसी नीतियां बनाई जा सकती हैं, जिससे विविधता को बढ़ावा मिले.  इससे समाज में व्याप्त स्त्री-पुरुष असमानता, क्षेत्रवाद, जातिवाद, रंगभेद जैसी कई विभेदनकरी नीतियों का उन्मूलन किया जा सकता हैं. और इन सबके कारण समाज में व्याप्त हुयी असमानता और नफरत को कम किया जा सकता हैं.
असहिष्णुता का विरोध ( Against Intolerance):
आजकल कई बार यह सुनने में आया कि कई महान हस्तियों द्वारा अपने पुरस्कार लौटा दिये गए, कुछ अभिनेता भारत में रहने में असुरक्षित महसूस कर रहे हैं. यह सब असहिष्णुता के कारण ही हो रहा है. दादरी में कुछ लोगों ने मिल कर एक युवक को सिर्फ इसलिए मार डाला, क्यूंकि उन्हें शक था की वो व्यक्ति गोमांस का उपयोग करता है. पूरी बात जाने बिना ही लोग अपना रोष प्रकट करने में लगे हैं. इसके बाद दादरी की इस घटना का विरोध करते हुए नयनतारा सहगल (भारतीय अँग्रेजी लेखिका) ने साहित्य अकादेमी पुरस्कार लौटा दिया. इस कड़ी में कई महानविभूतियों ने भी भारत में बढ़ रही असहिष्णुता के विरोध में अपने पुरस्कार लौटा दिये.
असहिष्णुता पर आमिर खान की टिप्पणी (Aamir Khan Intolerance issue in India):
भारत में बढ़ रहे असहिष्णुता के दौर में आमिर खान ने उनकी पत्नी किरण राव के विचार बताते हुए कहा, कि कई बार वे भारत में रहने में असुरक्षित महसूस करते हैं और इसलिए क्या उन्हे भारत छोड़ देना चाहिए? उनके इस कथन ने पूरे भारत को आहत किया. लोग यह सोचने पर मजबूर हो गए कि क्या वाकई भारत एक“असुरक्षित राष्ट्र” हो गया है, जहाँ लोगों की सुरक्षा का हमेशा डर रहता है.
अनमोल वचन [International day of tolerance quotes]
  • सहिष्णुता उसे कहते हैं जिसमें आप हर एक वो अधिकार दूसरे को देते हैं जिसे आप खुद के लिये मांगते हैं.
  • सहिष्णुता मतलब किसी तरह का विश्वास नहीं हैं, यह वह व्यवहार हैं जो आप उनके साथ करते हो जो आपकी बात से सहमत नहीं हैं.
  • सहिष्णु होना या किसी पर दया करना कमजोरी की निशानी नहीं, अपितु ताकत का प्रतीक हैं.
  • उचित शिक्षा का अधिकतम परिणाम सहिष्णुता के व्यवहार को दिखाता हैं.
  • सहिष्णुता की तरफ सहिष्णुता का भाव कायरता दिखाता हैं.
  • सहिष्णुता एक ऐसा व्यवहार हैं, जो आपको उन लोगो को माफ करने में मदद करता हैं जो बोलने से पहले एक बार भी नहीं सोचते.
  • सहिष्णुता को अपने जीवन में लाने के लिये, शत्रु ही सबसे अच्छा गुरु होता हैं. 

कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है By Tejaram Dewasi



कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है






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कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ , तू मुझसे दूर कैसी है
ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है
मोहब्बत एक अहसासों की पावन सी कहानी है
कभी कबिरा दीवाना था कभी मीरा दीवानी है
यहाँ सब लोग कहते हैं, मेरी आंखों में आँसू हैं
जो तू समझे तो मोती है, जो ना समझे तो पानी है
समंदर पीर का अन्दर है, लेकिन रो नही सकता
यह आँसू प्यार का मोती है, इसको खो नही सकता
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना, मगर सुन ले
जो मेरा हो नही पाया, वो तेरा हो नही सकता
भ्रमर कोई कुमुदुनी पर मचल बैठा तो हंगामा
हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा
अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मोहब्बत का
मैं किस्से को हकीक़त में बदल बैठा तो हंगामा।

Tuesday, March 5, 2019

राजस्थान मंत्रिमंडल में शामिल सभी मंत्रियों की कुण्डली

            INCREDIBLE NEWINDIA      


         राजस्थान मंत्रिमंडल और मंत्रियों के विभाग






1. अशोक गहलोत , मुख्यमंत्री :
वित्त, आबकारी, आयोजना, नीति आयोजन, कार्मिक, सामान्य प्रशासन, राजस्थान राज्य अन्वेषण ब्यूरो, सूचना प्रौद्योगिकी एवं संचार विभाग, गृह मामलात और न्याय विभाग।

2. सचिन पायलट, उपमुख्यमंत्री :
सार्वजनिक निर्माण, ग्रामीण विकास, पंचायती राज, विज्ञान व प्रौद्योगिकी और सांख्यिकी।

कैबिनेट मंत्री

3. बीडी कल्ला : ऊर्जा, जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी, भू-जल, कला, साहित्य, संस्कृति और पुरातत्व

4. शांति कुमार धारीवाल : स्वायत्त शासन, नगरीय विकास एवं आवासन, विधि एवं विधिक कार्य और विधि परामर्शी कार्यालय, संसदीय मामलात

5. परसादी लाल : उद्योग और राजकीय उपक्रम

6. मास्टर भंवरलाल मेघवाल : सामाजिक न्याय—अधिकारिता, आपदा प्रबंधन एवं सहायता

7. लालचंद कटारिया : कृषि, पशुपालन एवं मत्स्य

8. रघु शर्मा : चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, आयुर्वेद एवं भारतीय चिकित्सा, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएं (ईएसआई) और सूचना व जनसंपर्क

9. प्रमोद भाया : खान, गोपालन

10. विश्वेंद्र सिंह : पर्यटन, देवस्थान

11. हरीश चौधरी : राजस्व, उपनिवेशन, कृषि सिंचित क्षेत्रीय विकास एवं जल उपयोगिता

12. रमेश चंद मीणा : खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता मामले

13. उदयलाल आंजना : सहकारिता, इंदिरा गांधी नहर परियोजना

14. प्रताप सिंह खाचरियावास : परिवहन, सैनिक कल्याण

15. सालेह मोहम्मद : अल्पसंख्यक मामलात, वक्फ और जन अभियोग निराकरण

राज्य मंत्री

16. गोविंद सिंह डोटासरा : शिक्षा—प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा (स्वतंत्र प्रभार), पर्यटन, देवस्थान

17. ममता भूपेश : महिला एवं बाल विकास (स्वतंत्र प्रभार), जनअभियोग निराकरण, अल्पसंख्यक मामलात, वक्फ

18. अर्जुन सिंह बामनिया : जनजाति क्षेत्रीय विकास (स्वतंत्र प्रभार), उद्योग राजकीय उपक्रम

19. भंवर सिंह भाटी : उच्च शिक्षा (स्वतंत्र प्रभार), राजस्व उपनिवेशन कृषि सिंचित क्षेत्रीय विकास एवं जल उपयोगिता

20. सुखराम विश्नोई : वन विभाग (स्वतंत्र प्रभार), पर्यावरण विभाग (स्वतंत्र प्रभार), खाद्य-नागरिक आपूर्ति, उपभोक्ता मामले

21. अशोक चांदना : युवा मामले-खेल (स्वतंत्र प्रभार), कौशल-नियोजन व उद्यमिता (स्वतंत्र प्रभार), परिवहन, सैनिक कल्याण

22.टीकाराम जूली : श्रम विभाग (स्वतंत्र प्रभार), कारखाना एवं बॉयलर्स निरीक्षण (स्वतंत्र प्रभार), सहकारिता, इंदिरा गांधी नहर परियोजना  
23.भजनलाल जाटव : गृह रक्षा एवं नागरिक सुरक्षा विभाग (स्वतंत्र प्रभार), मुद्रण एवं लेखन सामग्री विभाग (स्वतंत्र प्रभार), कृषि, पशुपालन और मत्स्य विभाग  
24.राजेंद्र सिंह यादव : आयोजना (जनशक्ति) विभाग (स्वतंत्र प्रभार), स्टेट मोटर गैराज विभाग (स्वतंत्र प्रभार) भाषा विभाग (स्वतंत्र प्रभार), सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता और आपदा प्रबंधन एवं सहायता  
25.डॉ. सुभाष गर्ग : तकनीकी शिक्षा विभाग (स्वतंत्र प्रभार), संस्कृत शिक्षा विभाग (स्वतंत्र प्रभार), चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, आयुर्वेद व भारतीय चिकित्सा, ईएसआई, सूचना एवं जनसंपर्क।

Monday, March 4, 2019

आखिर क्यों मनाई जाती है हर साल महाशिवरात्रि, जानिए ये कथाएं

संपादक- तेजाराम देवासी  Incrediblenewindia.com                              
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आखिर क्यों मनाई जाती है हर साल महाशिवरात्रि, जानिए ये कथाएं

हर साल भारत में महाशिवरात्रि बड़े धूम-धाम से मनाई जाती है। सभी भक्त भगवान शिव को फल-फूल अर्पित करते है और शिवलिंग पर दूध और जल अर्पित करते है। इस दिन भक्त भांग भी पीते है। लेकिन क्या आप जानते है कि शिवरात्रि क्यों मनाई जाती है। आज हम आपको शिवरात्रि मनाने के कुछ पौराणिक कथाऐं बताएंगे -

महाशिवरात्रि मनाएं जाने के संबंध में पुराणों में कई कथाएं प्रचलित हैं। भागवत पुराण के अनुसार समुंद्र मंथन के समय वासुकि नाग के मुख में भयंकर विष की ज्वालाएं उठी और वे समुद्र के जल में मिश्रित हो विष के रूप में प्रकट हो गई। विष की यह ज्वालाएं संपूर्ण आकाश में फैलकर समस्त चराचर जगत को जलाने लगी। इस भीषण स्थिति से घबरा देव, ऋषि, मुनि भगवान शिव के पास गए तथा भीषण तम स्थिति से बचाने का अनुरोध किया तथा प्रार्थना की कि हे प्रभु इस संकट से बचाइए।
भगवान शिव तो आशुतोष और दानी है। वे तुरंत प्रसन्न हुए तथा तत्काल उस विष को पीकर अपनी योग शक्ति के उसे कंठ में धारण कर लिया तभी से भगवान शिव नीलकंठ कहलाए। उसी समय समुद्र के जल से चंद्र अपनी अमृत किरणों के साथ प्रकट हुए। देवता के अनुरोध पर उस विष की शांति के लिए भगवान शिव ने अपनी ललाट पर चंद्रमा को धारण कर लिया। तब से उनका नाम चंद्रशेखर पड़ा। शिव द्वारा इस महान विपदा को झेलने तथा गरल विष की शांति हेतु उस चंद्रमा की चांदनी में सभी देवों में रात्रि भर शिव की महिमा का गुणगान किया। वह महान रात्रि ही तब से शिवरात्रि के नाम से जानी गई।
लिंग पुराण के अनुसार एक बार ब्रह्मा और विष्णु दोनों में भी इस बात का विवाद हो गया कि कौन बड़ा है। स्थिति यहां तक पहुंच गई कि दोनों ही महान महाशक्तियों ने अपनी दिव्य अस्त्र शस्त्रों का प्रयोग शुरू कर युद्ध घोषित कर दिया। चारों ओर हाहाकार मच गया देवताओं, ऋषि मुनियों के अनुरोध पर भगवान शिव इस विवाद को शांत करने के लिए ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट हुए। यह लिंग ज्वालामय प्रतीत हो रहा था तथा इसका ना आदि था और नहीं अंत।
ब्रह्मा विष्णु दोनों ही इस लिंग को देख कर यह समझे नहीं कि यह क्या वस्तु है। विष्णु भगवान सूकर का रूप धारण कर नीचे की ओर उतरे तथा ब्रह्मा हंस का रूप धारण कर ऊपर की और यह जानने के लिए उडे कि इस लिंग का आरंभ हुआ अंत कहां है। दोनों को ही सफलता नहीं मिली, तब दोनों ने ही ज्योतिर्लिंग को प्रणाम किया। उस समय ज्योतिर्लिंग से ओम ॐ की ध्वनि सुनाई दी। ब्रह्मा विष्णु दोनों आश्चर्यचकित हो गए।
तब देखा कि लिंग के दाहिने और अकार, बांयी ओर उकार और बीच में मकार है। अकार सूर्यमंडल की तरह, उकार अग्नि की तरह तथा मकार चंद्रमा की तरह चमक रहा था और उन तीन कार्यों पर शुद्ध स्फटिक की तरह भगवान शिव को देखा। इस अदभुत दृश्य को देख ब्रह्मा और विष्णु अति प्रसन्न हो शिव की स्तुति करने लगे। शिव ने प्रसन्न हो दोनों को अचल भक्ति का वरदान दिया। प्रथम बार शिव को ज्योतिर्लिंग में प्रकट होने पर इसे शिवरात्रि के रूप में मनाया गया।
कथाएं जो भी है, सच्चाई इस बात की है कि विकट घड़ी में भगवान शिव ने चाहे विषपान से संबंधित समस्या थी या दो महाशक्तियों के युद्ध अशांति की समस्या, भगवान शिव ने साहस, पूर्वक धैर्यपूर्वक जगत के कल्याण हेतु कुशल आपदा प्रबंध किया इस हेतु शिवरात्रि को लोककल्याण उदारता ओर धैर्यता का प्रतीक माना जाता है।

अंधविश्‍वासी समाज

             भारत हमेशा से अंधविश्‍वासी लोगों की भूमि रही है। हर धर्म, हर संस्‍कृति और समुदाय में लोगों ने अलग-अलग अंधविश्‍वासों को जगह द...