Sunday, November 18, 2018

हिन्दुस्तान के इतिहास का सबसे बड़ा ठग

हिन्दुस्तान के इतिहास का सबसे बड़ा ठग, जिसने बेचा ताजमहल, लाल किला और राष्ट्रपति भवन

Tejaram dewasi,August 24, 2017 5:12 pm

हिन्दुस्तान के इतिहास में एक ठग ऐसा हुआ जिसके किस्सें आज भी लोगों जुबान पर है। नटवर लाल के नाम से मशहूर यह ठग कोई छोटा-मोटा ठग नहीं था। इसने ऐसी-ऐसी ठगी की जिसके बारे में आप सोच भी नहीं सकते है। नटवर लाल में लोगों को ठगने की अनोखी कला थी। लोग उसके बात करने के तरीके और आत्म विश्वास से प्रभावित होकर ठगी का शिकार बन जाते थे। नटरवर लाल ने तीन बार आगरा का ताजमहल, दो बार लाल किला और एक बार राष्ट्रपति भवन बेच दिया था। नटवर लाल का असली नाम मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव था। बताया जाता है कि मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव ने अपने जीवन काल में पुलिस से बचने के लिये 56 नाम रखे, लेकिन लोग उनको नटवर लाल के नाम से ज्यादा जानते थे। मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव के ठगी के कई किस्सें है, लेकिन इससे पहले हम आपको मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव उर्फ नटवर लाल के निजी जीवन के बारे में बताते है।

मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव उर्फ नटवर लाल का जीवन परिचय


मिथिलेश कुमार श्री वास्तव का जन्म बिहार के सीवान जिले में जीरादेई गांव में हुआ था। मिथिलेश कुमार की पत्नी की मृत्यु शादी के कुछ सालों बाद ही हो गई थी। उसके कोई संतान भी नहीं थी। बताया जाता है कि मिथिलेशकुमार ने वकालत कर रखी थी। वह थोड़ी बहुत अंग्रेजी भी बोल लेता था। कुछ समय के लिये उसने पटवारी की नौकरी भी की थी। लेकिन उसका मन वकालत और पटवारी की नौकरी में नहीं लगा। उसका दिमाग तो हेराफेरी, चार सौ बीसी, ठगी में ज्यादा चलता था। अपने जीवन काल में उसने ठगी की कई वारदातें की थी। जिनके चर्चे आज भी होते है।


नकली साइन करने में था माहिर


नटवर लाल में एक कला थी। वो किसी के भी हुबहू साइन कर लेता था। बताया जाता है कि एक बार नटवर लाल के गांव में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद आये थे। वहां नटवर लाल ने अपनी कला का नमूना पेश करते हुये डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के सामने उनके हुबहू हस्ताक्षर कर सबको चौंका दिया।अपनी इसी कला का फायदा उठाते हुये उसने पहली ठगी पडौसी के साथ की थी। उसने अपने पडौसी के चेक पर नकली साइन कर 1000 रूपये निकाल लिये। यहीं से उसने ठगी की दुनिया में कदम रख दिया। इसके बाद उसने एक से बढकर एक ठगी की वारदातों को अंजाम दिया।

ताजमहल, लाल किला और राष्ट्रपति भवन को बेचा


नटवर लाल की ठगी की कहानियों में सबसे ज्यादा मशहूर तीन बार ताजमहल, दो बार लाल किला और एक बार राष्ट्रपति भवन बेचना रहा। बताया जाता कि नटवर लाल  ने  राष्ट्रपति के नकली हस्ताक्षर कर इन इमारतों को बेच दिया था। नटवर लाल ने सरकार को ही नहीं बल्कि कई उद्योगपतियों को भी ठगा था। उसने सबसे ज्यादा सरकारी कर्मचारी और मध्यमवर्गीय परिवार के लोगों को निशाना बनाया था। नटवर लाल की अंग्रेजी भाषा पर पकड़ थोडी कमजोर थी नही तो वो विदेशों में भी कई वारदातों को अंजाम देता और विदेशों में भी उसके किस्सें सुनाये जाते। नटवर लाल पर उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, दिल्ली और हरियाणा में ठगी के 100 से ज्यादा मामले दर्ज थे। इन राज्यों की पुलिस ने मिथिलेश पर ईनाम घोषित कर रखा था।  अपने जीवनकाल में नटवर लाल 9 बार पकड़ा गया था, और सिर्फ 11 साल ही जेल में रहा। ठगी के 30 मामलों में तो उसे सजा ही नहीं मिल पाई थी।

पुलिस को चकमा देने में भी था माहिर


नटवर लाल जिस शातिराना अंदाज से ठगी करता था, उसी शातिराना अंदाज में पुलिस को चकमा देकर भागने में माहिर था। नटवर लाल कई बार पुलिस को चकमा देकर भागने में सफल रहा था। एक बार ठगी के एक मामले में नटवर लाल को दिल्ली की तिहाड जेल से कानपुर पेशी पर ले जाया जा रहा था। इस दौरान उसके साथ उत्तर प्रदेश पुलिस के दो सिपाही और एक हवलदार थे। दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भारी भीड़ थी। नटवर लाल की उम्र उस वक्त 75 साल थी। वह बैंच पर बैठा-बैठा हाफ रहा था। उसने यूपी पुलिस के जवान से कहा कि बेटा मेरा शरीर हाफ रहा है,  बाहर से दवाई लाकर मुझे दे दो, जब मेरे रिश्तेदार मिलने के लिये आयेंगे तो तुम्हारे पैसे वापस दे दूंगा। इसके बाद जवान दवाई लेने के लिये चला गया। नटवर लाल के पास अब दो पुलिस वाले बचे थे। इनमें से एक पुलिस वाले को नटवर लाल ने पानी लेने के लिये भेज दिया। अब सिर्फ हवलदार बचा था। हवलदार को नटवर लाल ने कहा कि बेटा मुझे बाथरूम जाना है। यहां भीड़ ज्यादा है और मुझे चलने में परेशानी हो रही है। तुम रस्सी पकडे मेरे साथ चलोगे तो लोग मुझे रास्ता दे देंगे। इसके बाद मिथिलेश उर्फ नटवर लाल ने भीड़ का फायदा उठाते हुये कब रस्सी खोली और कब गायब हो गया पता ही नहीं चला। नटवर लाल के फरार होने के बाद तीनों पुलिस वालों को निलंबित कर दिया गया। इससे पहले भी नटवर लाल पुलिस को गच्चा देकर भागने में सफल रहा था।



खुद को मानता था रॉबिन हुड


नटवर लाल अपने आप को गरीबों का मसीहा बताता था। वह कहता था कि मेरे द्वारा ठगी किये गये रूपयों को मैं गरीबों और जरूरतमंद लोगों को बांट देता हूं। नटवर लाल को अपने किये पर कोई मलाल नहीं था। वह अपने आप को रॉबिन हुड समझता था। वह कहता था कि मैंने कभी हथियार या मार पिटाई का सहारा नहीं लिया। लोगों से बहाने बनाकर रूपयें मांगे, और लोगों ने दिये। इसमें मेरा क्या कसूर है। नटवर लाल में इतना आत्मविश्वास था कि एक बार उसने कोर्ट में जज से कहा कि जज साहब मेरे बात करने का तरीका ही अनोखा है अगर आप मुझसे 10 मिनट बात कर लेंगे तो आप वहीं फैसला सुनाऐंगे जो मैं कहूंगा। 

अन्तिम बार कहां देखा गया


 नटवर लालनटवर लाल भारत के अलग-अलग जगहों पर अपनी पहचान छुपाकर फरारी काटता थ अन्तिम बार उसे बिहार के दरभंगा रेलवे स्टेशन पर देखा गया था। जहां एक पुलिस वाले ने उसे पहचान लिया था। वह पुलिस वाला उसे बचपन से जानता था नटवर लाल भी समझ गया था कि उसे पहचान लिया गया है। जब तक पुलिस वाले उसके पास पहुंचते तब तक वह फरार हो चुका था। बताया जाता है पास ही खडी मालगाड़ी के डिब्बे में नटवर लाल के कपडे मिले और गार्ड की यूनीफॉर्म गायब थी। इसके बाद 2004 में नटवर लाल का नाम सामने आया। तब एक वकील ने कहा था कि नटवर लाल ने अपनी वसीयतनुमा फाइल उसे सौंपी है। कुछ लोगों का कहना है कि नटवर लाल की मृत्यु 2009 में हुई है, जबकि उसके पारिवारिक रिश्तेदार दावा करते रहे है कि नटवर लाल 1996 में ही मर चुका है। नटवर लाल की मृत्यु को लेकर कोई स्पष्ट सबूत नहीं मिले है। ऐसे में इतिहास के इस सबसे बडे ठग ने अपनी मौत से भी लोगों को धोखा दिया।



मिथिलेश कुमार का नटवर लाल नाम आज इतना मशहूर हो चुका है कि अगर कोई ठगी की कोशिश या मजाक भी करे तो लोग उसे नटवर लाल के नाम से सम्बोधित कर देते है। नटवर लाल का नाम आज मुहावरे के रूप में सम्बोधित होने लगा है।


अंधविश्‍वासी समाज

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